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“चारो जुग परताप तुम्हारा”- हनुमान कलियुग सहित चारों युगों में विद्यमान रहें हैं

सत्यम्
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“चारो जुग परताप तुम्हारा”- हनुमान कलियुग सहित चारों युगों में विद्यमान रहें हैं

परम्परागत रूप से चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जानें वाला प्रमुख हिन्दू उत्सव हनुमान जयंती इस वर्ष आज 15 अप्रैल दिन मंगलवार को बड़े ही विशिष्ट संयोगों के साथ मन रहा है. मंगलवार को ही जन्में हनुमान जी की जयन्ती तिथि इस बार मंगलवार पड़ने से इसे विशेष संयोग माना जा रहा है. ज्योतिषाचार्य बता रहें हैं कि ऐसा विशिष्ट और पावन संयोग यदा कदा ही बनता है. पिछली बार ऐसा संयोग 30 मार्च 2010 को बना था. चिर काल से सनातनी हिंदुत्व की विजय पताका के ध्वजवाहक मानें जाने वाले और इसी रूप में पूजें जानें वाले अंजनीनन्दन पवन पुत्र हनुमान केवल सनातनियों के ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतीयों के लिए आस्था, विश्वास और श्रद्धा के केंद्र रूप में स्थापित हैं. श्री राम भक्त हनुमान के मंदिर या आराधना स्थल केवल भारत में ही नहीं अपितु पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा, कम्बोडिया, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, रशिया, अमेरिका, इंग्लेंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देशों में भी बनें हुयें हैं और वहां भी उनकी मनसा, वाचा और कर्मणा की कथाएं कही सुनी जाती हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की पवनपुत्र श्रद्धा के विषय में तो प्रचलित है कि वे सदा प्रवास के दौरान भी हनुमान जी की छोटी सी प्रतिमा साथ ही रखतें हैं. करोड़ों भारतीयों की भांति ही अमेरिकी राष्ट्रपति हनुमान में श्रद्धा के साथ साथ उनकें प्रसंगों में जीवन प्रबंधन के अनेकों गुणों को भी विस्तार से अपनें जीवन में अंगीकार किये हुए हैं. हनुमान की महिमा हमारें ग्रंथों, पुराणों में बड़े ही विस्तार से कही गई है. कहा जाता है कि चारों युगों में अपनें कृतित्व से भगवत्भक्ति करनें वाले हनुमान आज के कलयुग तक भी जीवित हैं और हमारें बीच ही विद्यमान हैं. तभी तो कहा गया है कि- चारों जुग परताप तुम्हारा, है प्रसिद्द जगत उजियारा संकट कटई मिटे सब पीरा, जो सुमीरे हनुमत बलबीरा अन्तकाल रघुवरपूर जाईं, जहां हरिभक्त कहाई और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई अर्थात कलियुग में मात्र हनुमान का ध्यान भर कर लेनें से सारे दुखों, कष्टों और पीड़ाओं का अंत हो जाता है, क्योंकि वे आज भी जीवित, जागृत अवस्था में हमारें बीच विद्यमान हैं. सतयुग में पावन रूप में सजीव रूप से विद्यमान हनुमान को शिव रूप में पूजा जाता था और वे भगवान् शिव के आठ रुद्रावतारों में शंकर सुवन केसरी नन्दन के रूप में कहलाये जाते थे. त्रेता युग में आंजनेय हनुमान ने अपनें जन्मों जन्मों के आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम का सान्निध्य और माता सीता का वात्सल्य प्राप्त किया. त्रेता युग में ही उनके अजर अमर होनें की एक किवदंती ध्यान में आती है- जब भगवान् लंका विजय के पश्चात अयोध्या लौटे और अपनें सभी साथियों जैसे सुग्रीव, विभीषण, अंगद को कृतज्ञता प्रकट करनें लगें तब श्रीराम द्वारा सभी को कुछ न कुछ भेंट स्वरूप दिए जानें के दृष्टांत में भक्त हनुमान प्रभु श्रीराम से कहतें हैं कि- यावद रामकथा वीर चरिष्यति महीतले, तावक्षरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशयः अर्थात हे भक्तवत्सल प्रभु श्रीराम, इस धरती पर जब तक राम कथा का पठन, पाठन और वाचन श्रवण होता रहे तब तक मेरे प्राण इसी शरीर में बसे रहें और मैं सशरीर प्रत्येक रामकथा में उपस्थित रहकर आपकी लीला कथा का आनंद श्रवण करता रहूँ. इस वृतांत में हनुमान के कलियुग में भी सशरीर जीवित रहनें का भान श्रीराम के इस उत्तर से मिलता है, भगवान् राम ने आशीर्वाद दिया- एवतमेत कपिश्रेष्ठ बविता नात्र संशयः, चरिष्यति कथा लोके च मामिका तावत भविता कीर्तिः शरीरे प्यत्वस्था लोकहि यावतश्थास्यन्ति तावत श्थास्यन्ति में कथाः अर्थात- हे प्रिय भक्त हनुमान इस जगत में जब तक मेरी कथा का वाचन श्रवण होता रहेगा तब तक इस कलियुग में तुम्हारी सशरीर प्रतिष्ठा स्थापित रहेंगी. द्वापर युग में हनुमान अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजित रहे. महाभारत के कई दृष्टान्तों में वीर हनुमान की वीरता और बल बुद्धि शाली आचरण के कई अवसर पढनें देखनें को मिलते हैं. कलियुग में हनुमान की उपस्थिति- शास्त्रोक्त है कि प्रभु श्रीराम से प्राप्त आशीर्वाद के कारण कलियुग में दिग दिगंत में जहां कहीं भी राम कथा का वाचन श्रवण हो रहा होता है वहां हनुमान विद्यमान रहते हैं. श्रीमद भागवत में कहा गया है कि कलियुग में पृथ्वी पर हनुमान का निवास स्थान गंधमादन पर्वत पर है. हनुमान के विषय में कथाओं में कहा गया है कि हनुमान धर्मो रक्षति रक्षितः के सूत्र को मानव मात्र का जीवन निमित्त बनानें हेतु पृथ्वी पर वास कर रहें है और जब सनातन धर्म की पुनर्स्थापना नहीं हो जाती वे धर्म व धर्म में आस्था रखनें वाले भक्तों की रक्षा हेतु सदा तत्पर रहेंगे. कलियुग में राम भक्त हनुमान के पृथ्वीलोक पर निवास करनें का एक वृतांत यह भी है कि गोस्वामी तुलसीदास जी को प्रभु श्री राम के दर्शन हुए थे. कहा जाता है कि कवि तुलसीदास की राम कथा लेखन और गायन के सतत क्रम से हनुमान ने प्रसन्न होकर तुलसी दास को दर्शन दिए तब गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान से प्रभु श्री राम के दर्शन करा देनें का भक्ति पूर्ण आग्रह किया. तुलसी दास के इस आग्रह से प्रसन्न होकर हनुमान ने उन्हें युक्ति पूर्वक श्री राम के जिस प्रकार दर्शन कराये वह घटना इस प्रकार है- आंजनेय हनुमान तुलसीदास को चित्रकूट में उस स्थान पर ले गए जहां प्रभु राम और भैया लक्ष्मण यदा कदा आया करते थे. वहां हनुमान ने गोस्वामी तुलसीदास से कहा कि आप चित्रकूट के घाट पर बैठे रहिये और मैं तोता बनकर यहीं वाटिका में किसी वृक्ष पर बैठा रहूँगा और जैसे प्रभु आयेंगे में आपको संकेत से बता दूंगा. इसके बाद कवि तुलसीदास राम दर्शन की आस में चित्रकूट के घाट पर बैठ कर आनें जानें वाले तीर्थ यात्रियों का चन्दन घिस कर तिलक करनें लगे. कुछ समय प्रतीक्षा करनें के पश्चात जैसे ही वहां प्रभु पधारे तोते के रूप में वृक्ष पर बैठे हनुमान ने यह पंक्ति गाकर तुलसीदास को संकेत किया और राम भक्त गोस्वामी तुलसीदास को भगवान् श्री राम के दर्शन करा दिए- चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़ – तुलसीदास चन्दन घिसे,तिलक देत रघुबीर. श्री राम प्रिय हनुमान का जीवन चरित न केवल भक्ति,बल, बुद्धि और विद्वता का परिचय देता है बल्कि इससे हमें जीवन, व्यवसाय, शासन, परिवार आदि संसार के सभी क्षेत्रों को साध लेनें का अद्भुत प्रबंधन विज्ञान भी जाननें को मिलता है. निस्संदेह कहा जा सकता है कि सूक्ष्म से लेकर विराट और समष्टि की दृष्टि को यदि विकसित करना हो तो वीर हनुमान के जीवन चरित का अध्ययन करना चाहिए.

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