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सीना 56 इंच का बनाम 5.6%की पिछड़ी विकास दर

सत्यम्
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सीना 56 इंच का बनाम 5.6%की पिछड़ी विकास दर

देश भर में विराट जनसभाओं की श्रंखला में जब भाजपा के प्रधानमन्त्री प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों विकास के लिए “56 इंच का सीना होना चाहिए” जैसा जुमला कसा तब मन में आया कि इस 56 इंच के सीनें के मायनें क्या हैं? विकास के जिस गुजरात माडल या मोदी माडल के कारण देश भर में मोदी को अपार जन समर्थन मिल रहा है और वे देश के प्रत्येक हिस्से में एक बड़ा विशाल जनसमूह उन्हें अगला प्रधानमन्त्री मान लेनें के आनंददायी मोड में आ गया है वह माडल केवल भारत की जनता में ही लोकप्रिय नहीं है अपितु उस माडल से अन्तराष्ट्रीय स्तर की आर्थिक संस्थाएं भी प्रसन्नचित्त होती दिखाई दे रहीं हैं!! तो क्या ये प्रसन्नता नमो के ५६ इंच के सीनें के भरोसे ही है या कुछ और भी है जो देश में सतह के नीचें करंट की भांति चल रहा है और नमो को लहर बना रहा है?

पिछले दिनों अन्तराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज कारपोरेशन की सहयोगी इकाई मूडीज एनालिटिक्स ने इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी और विकास के नए आयामों को छुनें की आशा व्यक्त की है. इस क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में इस तेजी की आशा की पृष्ठभूमि में भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को और नरेन्द्र मोदी को मिलनें वाले जनसमर्थन को मूलाधार माना है. इस एजेंसी ने कहा है आगामी लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी को मिलनें वाले जन समर्थन से उन्हें केंद्र में एक स्थिर सरकार का मुखिया बनने का मौका मिलेगा. इस क्रेडिट रेटिंग एजेंसी का मानना है कि एक स्थिर सरकार देनें में सक्षम होते जा रहे नरेन्द्र मोदी देश में उस भांति ही विकास चक्र चला पायेंगे जैसे उन्होंने गुजरात में चलाया है. आश्चर्य जनक रूप से इसके पूर्व दुनिया की कई जानी मानी शेयर ब्रोकिंग कम्पनियां, आर्थिक नीतियों के जानकार, बैंकर्स और अर्थशास्त्री भी ऐसी ही भाषा में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री बननें की बलवती आशाओं के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बढनें की आशा व्यक्त कर चुकें हैं. इसी क्रम में हाल ही में दुनिया भर में प्रसिद्द और शक्तिशाली वित्तीय संस्था गोल्डमैन सैक्स और सर्वाधिक मान्यता प्राप्त क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैण्डर्ड एंड पूअर्स ने भी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बननें की आशाओं के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से पटरी पर वापिस आनें, तेज विकास दर को छुनें की बात कही थी. इस संस्थाओं के अनुसार भारत अतिशीघ्र अन्तराष्ट्रीय मानकों पर नयें और ऊंचे स्थान पर दिखाई देगा और आश्चर्यजनक रूप से इन संस्थाओं ने भी यह मत नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री बननें की आशाओं के परिप्रेक्ष्य में ही व्यक्त किया है. इसी क्रम में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी लगभग इसी आशय की बात कही थी कि भारतीय अर्थव्यवस्था और औद्योगिक विकास दर को बनाएं रखनें और विकास मार्ग पर ले जानें के लिए आवश्यक है कि भारत में आनें वालें लोकसभा चुनावों से एक स्थिर, सुदृढ़ और निर्णय सक्षम सरकार का निर्माण होना चाहिए.

इसी क्रम में यह चर्चा भी समयानुकूल ही है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की एक समिति के अनुसार भारत की आर्थिक विकास दर इस वर्ष 5.3%रहने की उम्‍मीद है जो कि पूर्वानुमान से कम होती दिख रही है. संयुक्त राष्ट्र विश्व आर्थिक स्थिति एवं संभावना, 2014 (डब्ल्यूईएसपी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलु खपत में कमी क्षीण होते निवेश के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2013 में और घट गई है. वर्ष 2013 में भारत की वृद्धि दर घटकर 4.8 %पर आ गई जो 2012 में 5.1 %थी. इस रिपोर्ट में 2014 में विकास दर मात्र 5.6% के निचले स्तर पर रहने की आशा व्यक्त की गई है.

आवश्यक ही है कि जब लगभग सभी वैश्विक आर्थिक संस्थान भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी का एक प्रमुख कारक नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री बननें की आशा को बता रहें हो तब राजनैतिक परिदृश्य में भी इस बात के अर्थ और इन शुभ आशाओं के निहितार्थ खोजें जानें चाहिए. आवश्यक यह भी है कि देश में एक स्थिर, निर्णय-सक्षम ,विवेकशील, ईमानदार और राष्ट्रवादी सरकार देनें की क्षमताओं वाले इस नेता नरेन्द्र मोदी के विषय में भी राष्ट्र की अधिकाँश जनता अपना मानस बना ले. अब तक के राजनैतिक विश्लेषणों, पूर्वानुमानों और आकलनों से स्पष्ट है कि भारतीय मतदाताओं और ख़ास तौर पर युवा मतदाताओं का मानस नरेन्द्र मोदी के पक्ष में तेजी से ध्रुवीकृत होकर एक बड़ी निर्णायक क्षमता बनता जा रहा है. आज जबकि देश लोकसभा चुनावों की लगभग पूर्व संध्या पर ही खड़ा है तब यह भी आवश्यक है कि इस देश का मतदाता इस देश को एक शक्तिशाली सरकार देनें के लिए कृतसंकल्पित हो जाए. राजनीति में नए प्रयोगों के नाम पर कुछ अराजक और संदेहास्पद लोगों के समूहों के हाथों में यदि वोटों का एक छोटा प्रतिशत भी चला गया तो हमारा समूचा देश इस गलती की कीमत एक कमजोर, अल्पमत और अनिर्णयी सरकार को झेलते रहनें को मजबूर होकर चुकाएगा. यद्दपि अब राजनैतिक स्थितियां जिस तेजी से जिस सधेपन से नरेन्द्र मोदी के पक्ष में बढ़ चलीं है उससे आश्वस्त हुआ जा सकता है तथापि पिछले एक माह में भारतीय राजनीति में तेजी से आये परिवर्तनों से यह आशंका निर्मूल तो नहीं ही साबित होती हैं कि यदि मतों का विभाजन नहीं रूका तो भारत पुनः एक बार दिल्ली में एक अस्थिर सरकार को मजबूर, निर्णयहीन और लाचार सरकार को बैठे हुए देखेगा. नई लोकसभा के गठित होनें और नए प्रधानमन्त्री के शपथ लेनें के दिवस के ठीक पहलें के महत्वपूर्ण दौर से गुजरतें हुए हमारा मतदाता जितना ही दृढ़ संकल्पित, दृढ़ प्रतिज्ञ और दृढ़ निर्णयी होगा उतना ही आनें वाले दशकों में हम विकास कर पायेंगे और उतना ही फल और सुख हमारी आनें वाली पीढ़ी और इस देश के नौनिहाल भोग पायेंगे यह तय है.

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