Menu
blogid : 12861 postid : 667771

सत्यम्
सत्यम्
  • 169 Posts
  • 41 Comments

दिल्ली विस परिणाम: आगामी लोकसभा में अखंड जनादेश का सबक
—————————————————
आज की परिस्थितियों में आवश्यक नहीं की केवल आदर्शों और अच्छी बातों से या घटनाओं से भविष्य के लिए सबक सीखें जाएँ; कुछ बुरी घटनाएं भी भविष्य के लिए एक बेहतर सबक दे जाती हैं या एक अनोखा और अनुकरणीय अध्याय पढ़ा जाती हैं. हाल ही में संपन्न दिल्ली विधानसभा के चुनाव को भी एक ऐसी ही घटना के रूप में लिया जाना चाहिए जिससे हमें एक देश के सन्दर्भों में एक नया अध्याय पढनें, सीखनें और समझनें को मिलता है. इस दृष्टि से देखें तो लगता है की देश की राजधानी ने सम्पूर्ण देश की जनता को लोकसभा चुनाव 2014 की पूर्व संध्या पर एक सन्देश दे दिया है कि आनें वालें लोकसभा चुनावों में वह खंडित नहीं बल्कि एक राष्ट्रवादी जनादेश दे जो कि आवश्यक रूप से अखंडित हो.
वर्ष 2014 में होनें वाले केन्द्रीय चुनाव हमारी देश की स्वतन्त्रता के बाद से होते आ रहे लोकसभा चुनावों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं. महत्वपूर्ण इस दृष्टि से कि देश पिछले लगभग चार दशकों की अस्थिर केंद्र सरकारों के बाद देश आवश्यक रूप से एक मजबूत, निर्णायक और सक्षम किन्तु जन-केन्द्रित नेतृत्व चाहता है. यह विषय और अधिक महत्वपूर्ण और समीचीन इस लिए भी हो जाता है कि लगभग पांच प्रतिशत पर आ चुकी हमारी विकास दर, रक्षा मोर्चों पर भारतीय विफलता, कम होता सैन्य स्वाभिमान और आत्मविश्वास, वैश्विक अर्थ व्यवस्था में हमारा सतत पिछड़ना, वैदेशिक विषयों पर हमारी निरंतर विफलताएं, पड़ोसी देशों का हम पर हावी होना, घरेलु उत्पादन का प्रतिशत और ट्रेंड दोनों बिगड़ना, रोजगार में गिरावट, शिक्षा क्षेत्र का अस्थिर होना, राज्यों के साथ केंद्र सरकार के बिगड़ते सम्बंध, विदेशी मुद्रा कोष का लगातार सिकुड़ना और भारतीय कृषि उत्पादन में कमी और इसके उत्पादन ट्रेंड्स के बिगड़ने आदि घटनाओं ने हमारें देश को एक संवेदनशील स्थिति में ला खड़ा किया और यहाँ से आगे का रास्ता देश को केवल किसी मजबूत नेतृत्व और सक्षम-निर्णायक सरकार से ही मिल सकता है.
यह उल्लेख करनें की या दोहरानें की कोई आवश्यकता नहीं कि देश और जनता अब गठबंधन या बैसाखी पर खड़ी केंद्र सरकारों से परेशान और दुखी हो उठी है. इस प्रकार की सरकारें एक उल्लास और उमंग के साथ बनते तो दिखी किन्तु हर बार ये परजीवी सरकारें तनाव, निराशा और असफलताओं के साथ मरते या मर मर कर जीते ही दिखी हैं. देश में गठबंधन सरकारों का वर्तमान दौर 1977 की जनता पार्टी सरकार से प्रारम्भ हुआ था. दो वर्ष से भी कम समय में जनता पार्टी की सरकार गिर गई और चरण सिंह के नेतृत्व में जनता पार्टी (सेक्युलर) की नई सरकार बनाई गई थी. कांग्रेस के घोर अलोकतांत्रिक आचरण से पहले जनता सरकार गिरी और उसके समर्थन से बनी चरणसिंग सरकार के घटना क्रम में कांग्रेस के एक नए चरित्र को उजागर किया था और सत्ता लोलुपता के नए कीर्तिमान इस देश की जनता ने बेहद निराशा पूर्वक देखे थे. कांग्रेस का नेतृत्व कर रही इंदिरा गांधी ने जिस प्रकार से इन ढाई सालों में सत्ता के लिए व्यक्तियों की कमजोरियों से खेला वैसा उदाहरण और वैसी लोकतांत्रिक गिरावट की कल्पना भी हमारें नौनिहाल देश की विकसित होती लोकतांत्रिक राजनीति ने नहीं की थी. किन्तु कांग्रेस को इस बुरे आचरण के बाद भी जनता ने केवल इस लिए स्वीकारा और अपनाया क्योंकि वह एक स्थिर सरकार और मजबूत नेतृत्व चाहती थी जो उसे इंदिरा गांधी की छवि में दिख रहा था. इस मजबूत नेतृत्व और सक्षम सरकार की आशा ने इंदिरा गांधी से बेहद नाराज इस देश की जनता से कांग्रेस के पक्ष में वोट कराया और 1980 में कांग्रेस पुनः केंद्र में मजबूती से सत्तारूढ़ हुई थी. 1980 से लेकर 1989 तक केंद्र में इंदिरा और राजीव की मजबूत सरकार रही किन्तु इसके बाद 1989 में पुनः वी पी सिंग के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी जिसे बाहर से भी समर्थन मिला और कुछ दलों ने सरकार में रहकर भी इस सरकार समर्थन किया. कांग्रेस से इतर बनने वाली इस सरकार के पतन के बाद भाजपा द्वारा अटल जी के नेतृत्व में 13 दिवसीय सरकार बनी और इसके बाद देवेगौड़ा, आई के गुजराल और चंद्रशेखर का प्रधानमन्त्री बनना और हटना भी इस देश ने देखा और भोगा. गठबंधन की अब तक की इन सभी केंद्र सरकारों के अनुभव में अटल सरकार का अच्छा अनुभव घटा दे तो अन्य सभी जोड़ तोड़ की सरकारों में दो समानताएं सदैव रही न. एक यह कि ये सरकारें देश को एक सक्षम नेतृत्व न देकर स्वयं ही एक बोझ बनी रही फलस्वरूप देश को हर मोर्चें पर बड़ी और दीर्घकालीन हानियों को झेलना पड़ा और न. दो समानता यह रही कि कांग्रेस ने इन सभी संवेदन शील अवसरों पर एक राष्ट्रीय दल का चरित्र प्रस्तुत न करके केवल दलीय स्वार्थो को केन्द्रित रखा और सत्ता प्राप्ति के लिए हर संभव और हद दर्जे का अलोकतांत्रिक आचरण प्रस्तुत किया. पिछले लगभग चार दशकों की राजनीति का विश्लेषण और स्मृतियाँ इस देश के मानस पर अंकित हैं और गठबंधन की सरकारों के विरुद्ध कांग्रेस के षड्यंत्रों के अध्याय किसी से छुपें नहीं है. यद्दपि देश में गठबंधन की राजनीति ने भी स्नातक दीक्षा प्राप्त कर ली है यह कहा जा सकता है और कुछ अवसरों पर इन सरकारों ने अच्छे उदाहरण भी प्रस्तुत किये हैं तथापि यह अविवादित है कि अपनें अपनें स्वार्थों में लिट् पिट सभी दल चाहे वे प्रादेशिक हो राष्ट्रीय इस देश को एक सांगोपांग हितकारी और लोक कल्याणकारी सरकार देनें में नितांत असफल रहें हैं. अटल बिहारी वाजपेयी जैसे राष्ट्रीय व्यक्तित्व को भी किस प्रकार ममता बनर्जी जैसे क्षत्रपों ने किस प्रकार छकाया-सताया और दुखी किया था यह देश के मतदाताओं के मानस पर अब भी अंकित है. भारतीय जनता की स्मृति कभी कम नहीं रही उसनें सभी राजनैतिक घटनाओं और दुर्घटनाओं को सदा याद रखा है यह सत्य है किन्तु दुर्भाग्य वश मुझे यह भी कहना पड़ता है कि यह भी सत्य है और इतिहास भी साक्षी है कि भारतीय जनता ने कुछ कम अवसरों पर ही वोट करते समय अपनी इस स्मृति का उपयोग किया है और इस आचरण का ही परिणाम रहा है कि इस देश को अल्पमत या लंगडी सरकारों का परजीवी शासन झेलनें को मजबूर होना पड़ा है.
दिल्ली विधानसभा के हाल के आये त्रिशंकु परिणामों दुर्भाग्य जनक तो हैं किन्तु लगता है कि नियति और भविष्य हमें कुछ सन्देश-सबक देना चाहते हैं. देश की राजधानी से पुरे देश में राजनैतिक सन्देश और इनपुट अन्तर्प्रवाहित होतें हैं. अब पुरे देश की जनता को दिल्ली के अंतर्प्रवाह और सन्देश को समझना होगा कि दिल्ली चुनाव का आउटपुट सन्देश आनें वाले केन्द्रीय चुनावों का इनपुट निर्णय होना चाहिए. अल्पकालीन विषयों को लेकर जन्मी राजनैतिक पार्टियां जनता में जो भीषण आकर्षण उत्पन्न करती हैं उतने ही भयंकर विकर्षण भी वे जल्दी ही उत्पन्न कर देती हैं. दिल्ली चुनाव के आउटपुट को देश और यहाँ की जनता समझें और एक स्थिर, मजबूत, राष्ट्रवादी, ईमानदार, संकल्पित, कुशल प्रशासक, अनुभवी, मिट्टी से जुड़े, संस्कृति पर टिके और सदाचारी व्यक्तित्व के नेतृत्व में और एक देखी परखी विचारधारा वाली पार्टी के मंच पर एक मजबूत स्पष्ट बहुमत की सरकार बनानें के लिए वोट करें यही सामयिक, समीचीन और श्रेष्ठ निर्णय है. सत्व यह कि देश की राजधानी दिल्ली के तख़्त से प्रकृति ने जो हाल ही में सिखाया है वह हमें सीखना और समझना ही होगा अन्यथा यह देश पुनः किसी अल्पमत या गठबंधन सरकार के अक्षम नेतृत्व में फंसकर पिछड़ता ही रहेगा.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply