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पिछले वर्ष की आठ घटनाएँ जिनसे पाक के हौसले बुलंद हुए:भाग1

सत्यम्
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पिछले वर्ष की आठ घटनाएँ जिनसे पाक के हौसले बुलंद हुए:भाग1

पाक द्वारा हमारें पांच सैनिकों की ह्त्या का दुस्साहस हमारी पिछली चुप्पियों का परिणाम है!!

आज फिर भारत शोक संतृप्त है और शर्मसार भी! हैरान भी है और परेशान भी!! निर्णय के मूड में भी है और अनिर्णय के झंझावात में भी!!! पाकिस्तान की शैतानी सेना और आतंकवादियों की ढाल बनी सेना ने पूंछ सेक्टर में एक बार फिर आक्रामक होकर हमारें पांच सैनिकों की ह्त्या कर मार डाला और हमारा देश इन वीर शहीदों की लाशों पर आंसू बहा रहा है. रात्रि में किये गए कायराना हमलें में पाकिस्तान ने जिस प्रकार हमारें सैनिकों की नृशंस ह्त्या की उससे हमारें प्रधानमन्त्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री इस अवसर पर सदा की भांति किंकर्तव्यविमूढ़ हो गएँ हैं किन्तु वे बेतुके बयान और बेहयाई भरे हाव भाव का प्रदर्शन करनें में बिलकुल भी रूक नहीं रहें हैं. एक बार फिर हमारी इन तीनों मंत्रियों की राष्ट्रीय टोली स्थितियों को सैन्य या राजनयिक चतुराई भरी आक्रामकता के स्थान पर केवल निराशाजनक, बेवकूफियों भरें और आक्रामकता विहीन आचरण का प्रदर्शन कर रही है. हमारें रक्षा मंत्री एंटोनी ने तो बाकायदा दोहरे अर्थ निकालनें वाला आधिकारिक व्यक्तव्य संसद में दिया और पाकिस्तान को भाग निकलनें का सटीक मौका देकर देश को हाथ मलते रहनें के लिए मजबूर कर दिया. मनमोहन सिंग के प्रधानमंत्रित्व काल के एक दशक में हमनें न जानें कितनें ही पाकिस्तानी दंश झेल लिए किन्तु प्रत्येक सैन्य और राजनयिक दंश का जवाब भारत ने केवल अपनी तथाकथित समझदारी से ही दिया है; कहना न होगा कि पाकिस्तान के सामनें हम भीरु, दब्बू और कमजोर आचरण की एक लम्बी श्रंखला प्रस्तुत कर विश्व समुदाय के सामनें अपनी स्थिति को खराब और दुर्बल कर चुकें हैं.

पाकिस्तान के साथ सम्बंधों के सन्दर्भ में हम शिमला समझौते की बात करें या इसके बाद इसी विषय पर जारी घोषणा पत्र पर पाकिस्तानी धोखे की बात करें, साठ के दशक में पाकिस्तानी सैन्य अभियानों के साथ साथ कश्मीर से छेड़छाड़ के दुष्प्रयासों की बात करें या 2003 के युद्ध विराम की बात करें या संसद पर हमलें और मुंबई के धमाकों को याद करें या हमारें दो सैनिकों की ह्त्या कर उनकी सर कटी लाश हमें देनें के दुस्साहस की बात करें या इस परिप्रेक्ष्य में हुए कितनें ही पाकिस्तानी घातों और भारतीय अभियानों की बात करें तो हमारें पास केवल धोखें खानें और चुप्पी रख लेनें का बेशर्म इतिहास ही तो बचता है!! 1971 में पाकिस्तान के विभाजन के समय जैसे कुछेक अवसर ही आयें हैं जब हम भारतीय अपनी आँखें ऊँची कर पायें हैं अन्यथा घटनाओं के आईनें से तो इतिहास हमें शायद ही क्षमा कर पाए.

हम हमारें पिछलें पैसठ वर्षों के इतिहास पर न जाएँ और पिछले लगभग एक वर्ष की घटनाओं की ही समीक्षा कर लें तो हमें लगेगा कि हमें भुलनें की बीमारी हो गई है या हमारी स्मृति लोप बेशर्मी की हद तक हो गया है. पिछलें वर्ष हुई भारत-पाकिस्तान के बीच घटी इन घटनाओं की समीक्षा हमें निराशा के गहरें सागर में डुबो सकती है किन्तु फिर भी हमें इन्हें पढना, बोलना और समझना ही होगा क्योंकि इतिहास को पढ़कर आत्मलोचन और आत्मावलोकन कर लेनें से ही हम भविष्य के लिए तैयार हो पायेंगे. इन घटनाओं से हमें यह पता चलता है कि हमारा केन्द्रीय नेतृत्व कितना आत्ममुग्ध, पंगु, बेशर्म और बेगैरत गो गया है.

जरा याद कीजिये पिछले लगभग एक वर्ष में घटी इन शर्मनाक घटनाओं को-

सितम्बर,12 – हमारें विदेश मंत्री पहुँच गए हमें नासूर देनें वालें लाहौर के स्थान मीनार-ए-पाकिस्तान पर-

हमारें विदेश मंत्री एस.एम्. कृष्णा पाकिस्तानी प्रवास के दौरान मीनार-ए-पाकिस्तान पर तफरीह के लिए पहुँच गए थे. यही वह स्थान है जहां 1940 में पृथक पाकिस्तान जैसा देशद्रोही, भारत विभाजक प्रस्ताव पारित हुआ था. एक देश का भाषण दूसरे देश में भूल से पढ़कर भद्द पिटवाने वाले हमारे विदेश मंत्री कृष्णा जी को और उनके स्टाफ को यह पता होना चाहिए था कि द्विराष्ट्र के बीजारोपण करनें वाले इस स्थान पर उनके जाने से राष्ट्र के दो टुकड़े हो जाने की हम भारतीयों की पीड़ा बढ़ जायेगी और हमारें राष्ट्रीय घांव हरे हो जायेंगे. देशवासियों की भावनाओं का ध्यान हमारें विदेश मंत्री कृष्ण को होना ही चाहिए था जो अंततः उन्हें नहीं रहा और पाकिस्तान ने उन्हें कूटनीति पूर्वक इस स्थान पर ले जाकर हमें इतिहास न पढनें न स्मरण रखनें वालें राष्ट्र का तमगा दे डाला. हमारें विदेश मंत्री को ध्यान रखना चाहिए कि भारत-पाकिस्तान के परस्पर सम्बंध कोई अन्य दो सामान्य राष्ट्रों के परस्पर सम्बंधों जैसे नहीं हैं; हमारी बहुत सी नसें किसी पाकिस्तानी हवा के भी छू भर लेनें से हमें ह्रदय विदारक कष्ट दे सकती है या हमारें स्वाभिमान को तार तार कर सकती है!! हैरानी है कि इस बात को हमारा गली मोहल्लें में क्रिकेट खेलनें वाला नौनिहाल जानता है उसे तथाकथित विद्वान् विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा नहीं समझ पाए.

अक्तूबर,12 – चीनी ने पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर का अधिग्रहण किया भारत रहा चुप –

चीन और पाकिस्तान के सामनें जिस प्रकार भारतीय विदेश और रक्षा नीति विफल हो रही है वह बेहद शर्मनाक है. इस दोनों देशों का कूटनीतिक समन्वय तोड़ना भी भारत की प्राथमिकता में होना चाहिए जो नहीं है. पाक स्थित ग्वादर बंदरगाह के चीनियों द्वारा अधिग्रहण और उसकी विशाल विकास योजनाओं के समाचारों की पुष्टि से भारत को सचेत होना चाहिए था किन्तु भारत ने वैश्विक स्तर पर और चीन के सामनें व्यवस्थित विरोध प्रकट नहीं किया. चीन के साथ हो रहे ७० अरब डालर के व्यापार का संतुलन पचास अरब डालर घाटे का है अर्थात हम चीन को पचास अरब डालर के आयत के सामनें मात्र २० अरब डालर का ही निर्यात कर पातें हैं अर्थ स्पष्ट है कि – चीन को हमारी अधिक आवश्यकता है – किन्तु इस तथ्य का भी हम लाभ नहीं उठा पायें हैं. फलस्वरूप भारतीय दुष्टि से सामरिक महत्व के ठिकानें या तो चीन के कब्जें में चलें जायेंगे या उसकी सीधी निगरानी में रहनें को मजबूर हो जायेंगे जो कि दीर्घ काल में सैन्य दृष्टि से हानिकारक होगा.

नवम्बर, 12: पाकिस्तानी आतंकवादियों से हमारा भारतीय दुखी-परेशान था तब गृह मंत्री सुशिल शिंदे ने कहा अतीत भूलो क्रिकेट खेलो.

नवम्बर में जब पूरा भारत पाक के विरुद्ध उबल रहा था, हमारी सेनायें संघर्ष कर रही थी, पाक प्रशिक्षित आतंकवादी पुरे देश में ग़दर कर रहे थे और सामान्य जनता पाक में हो रहे हिन्दुओं पर अत्याचारों के कारण उससे घृणा कर रही थी और पाक के साथ आर पार के मूड में थी न कि क्रिकेट खेलनें के तब हमारें गृह मंत्री ने बयान दिया कि हमारें देश को अतीत को भूल कर पाक के साथ क्रिकेट खेलना चाहिए!! पाकिस्तान से क्रिकेट खेलनें के लिए भारत की जनता को सार्वजनिक रूप से यह बयान देते समय शिंदे जी लगता है सचमुच भारत के प्रति पाकिस्तान की कड़वाहट, अपमान और छदम कारस्तानियों को भूल गएँ थे. भारतीय गणराज्य के केन्द्रीय गृह मंत्री होने के नाते यह निकृष्ट सलाह देते समय शिंदे जी को एक आम भारतीय के इस प्रश्न का जवाब देते न बना था कि “भारत पाकिस्तान सम्बन्धों के सबसे ताजा कुछ महीनों पहले के उस प्रसंग को हम कैसे भूल जाएँ जिसमें पाकिस्तान की खूबसूरत विदेश मंत्रीं हिना की जुबान पर यह धोखे से सच आ गया था कि “आतंकवाद पाकिस्तान का अतीत का मंत्र था, आतंकवाद भविष्य का मंत्र नहीं है”. अनजाने ही सही पर यह कड़वा और बदसूरत सच हिना रब्बानी की हसीं जुबाँ पर आ ही गया था और पाकिस्तानी कूटनीतिज्ञों ने भी इस धोखे से निकल पड़े इस बयान को लेकर अन्दरखानें हिना की लानत मलामत भी की थी. तब इस बात को देशवासी तो अवश्य याद कर रहे थे और गृह मंत्री जी से भी आग्रह कर रहे थे कि भले ही ये सभी कुछ आप भूल जाएँ और खूब मन ध्यान से क्रिकेट खेलें और खिलाएं किन्तु ऐसा परामर्श कहीं भूल से भी देश के रक्षा मंत्री को न दे बैठें नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा!!

तब भारतीय अवाम ने सुशील शिंदें से यह पूछा था कि पाकिस्तानी धन बल और मदद से कश्मिर में विध्वंस कर रहे अलगाव वादी संगठन अहले हदीस के हुर्रियत और आई. एस. आई. से सम्बन्ध और इसकी 600 मस्जिदों और 120 मदरसो से पूरी घाटी में अलगाव फैलाने की बात तो हमारा अतीत नहीं वर्तमान है तो अब क्या हमें क्रिकेट खेलनें के लिए वर्तमान से भी आँखें चुराना होगी? क्रिकेट की थोथी खुमारी के लिए क्या हम वास्तविकताओं से मुंह मोड़ कर शुतुरमुर्ग की भाँती रेत में सर छुपा लें?? कश्मीर की शांत और सुरम्य घाटी में युवको की मानसिकता को जहरीला किसना बनाया? किसने इनके हाथों में पुस्तकों की जगह अत्याधुनिक हथियार दिए है?? किसने इस घाटी को अशांति और संघर्ष के अनहद तूफ़ान में ठेल दिया है ??? इस चुनौतीपूर्ण वर्तमान को हम भूल जाएँ तो कैसे और उस षड्यंत्रों से भरे अतीत को छोड़ें तो कैसे शिंदे जी जिसमें अन्तराष्ट्रीय मंचों से लेकर भारत के कण कण पर कश्मीर के विभाजन, कब्जे और आक्रमण की इबारत पाकिस्तान ने लिख रखी है ?!!! दिल्ली, मेरठ और लखनऊ की गलियों में ठेला चलाते और निर्धनता पूर्ण जीवन जीते उन निर्वासित कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को हम कैसे भूलें जो करोड़ो अरबों रूपये वार्षिक की उपज उपजाने वालें केसर खेतों के मालिक थे???  तब देश की आत्मा ने शिंदे से यही और केवल यही कहा था कि – शिंदे जी हम अतीत और वर्तमान की हमारी छलनी ,रक्त रिसती और वेदना भरी राष्ट्रीय पदेलियों के घावों को भूलना नहीं बल्कि उन्हें देखते रहना और ठीक करना चाहते हैं और आपको भी इस राष्ट्र की इस आम राय से हम राय हो जाना चाहिए! कृपया इतिहास को न केवल स्मृतियों में ताजा रखें बल्कि उसे और अच्छे और प्रामाणिक ढंग से लिपिबद्ध करें! शिवाजी से लेकर महाराणा प्रताप और लक्ष्मी बाई के गौरवपूर्ण इतिहास से लेकर बाबरों, मुगलों, गजनवियों, अफजलों और कसाबों के षड्यंत्रों को हमें याद रखना भी रखना होगा और आने वाली पीढ़ी को व्यवस्थित लिपिबद्ध करके भी देना होगा क्योंकि क्रिकेट हमारी प्राथमिकता हो न हो किन्तु राष्ट्रवाद का आग्रह और राष्ट्र के दुश्मनों की पहचान और उनसें उस अनुरूप व्यवहार हमारी राष्ट्रीय प्राथमिकता है और रहेगी.

क्रमशः

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