सत्यम्
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धुप पर सवार लय
कहीं से एक लय सुनाई दे रही थी
और दूर कहीं
एक ताल
जैसे उस लय को खोजती हुई
तेज गर्मियों की धुप पर सवार होकर
अपनें अस्तित्व के
इकहरे पन को ख़त्म कर लेना चाहती थी.
लय और ताल
अपनी इस यात्रा में
अपनें अस्तित्व को साथ लिए चलते थे
किन्तु उनका ह्रदय छूट जाता था
हर उस स्थान पर
जहां जहां उन्होंने
नम मिट्टी में
बो दिए थे बीज, कुछ सुन्दर पलों के.
पलों के उगते छोनें पौधों को देखनें
कितनें ही दिन
वे ठिठके रहते थे वहीँ
और
एकटक देखते निहारतें रहतें थे
आँखों के थकनें क्लांत होनें तक
पर
यह क्लान्ति थका नहीं पाती थी
उनकी जीवंत आँखों को.
लय ताल की
यह परस्पर खोज यात्रा
किस क्षण पूर्ण होकर भी
अपूर्ण महसूसती है;
और किसमें
अपूर्णता के भाव को
वह दे देती है पूर्णता के चरम का भान
यह कुछ क्षणों के ह्रदय भर को पता होता है.
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