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“हुई पहली फुहार भरी बारिश तो तेरी याद आई”

सत्यम्
सत्यम्
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“हुई पहली फुहार भरी बारिश तो तेरी याद आई”


हुई पहली फुहार भरी बारिश तो तेरी याद आई

निंदिया से पहले सपनों की बारात

और साथ में

कुछ हलके-हौले से बीत जानें की

बोझिल सी बात भी आई.

हर बूँद के साथ बरसा जो

वो सिर्फ पानी न था.

तेरे यहीं कहीं होने का अहसास भी था उसमें

और तेरी बातों के चलते रहनें का भ्रम भी.

उस बरसतें पानी में कही

गहरे उच्छवासों के साथ

कहे गए शब्दों के बेतरतीब से गजरे भी थे

जो कैसे भी अच्छे ही लगते थे.

गहरी पैठी रंगत के साथ

उठे उठे से रंग

और

अपनी पंखुड़ियों पर

स्फूर्ति और जीवंतता की आभा लिए

वे पुष्प बेतरतीब होकर भी

कितनें ही आकर्षक और मोहक हो गए थे.

बारिश

लगता नहीं कि अब बीतेगी

हाँ कुछ और

यहाँ वहाँ से

और इधर उधर से बीत जाएगा.

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