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“ब्रह्मनाद और स्मृतियाँ”

सत्यम्
सत्यम्
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“ब्रह्मनाद और स्मृतियाँ”

एक शिरा

दो धमनियां

तीन स्पंदन

इन सभी का एक छोटा सा बुलबुला

और

तुम्हारें मेरें प्यार के बड़े होते संसार में

बची कुछ अनुभूतियाँ.

जिजीविषा के साथ जीवन को जी लेती

स्मृतियां

और

इन सभी के सान्निध्य को लिए

कहीं दूर से होते, आते, पुकारतें

आकाश गंगा के जैसे

अनवरत, अक्षुण्ण, अनाकार, अनंत

ब्रह्मनाद.

इन्हें

हम कुछ शब्दों में ही तो बाँध देतें हैं.

कितना सरल होता है

ब्रह्मनाद को भी

कुछ शब्दों निशब्दों में ढाल देना

किन्तु

कितना दरुह और दूभर होता है

प्राणों में

गहरें कहीं धंस गई

स्मृतियों को विस्मृत करना.

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