सत्यम्
- 169 Posts
- 41 Comments
ईश्वर का अंश लिए आँखें चिड़िया की
शहर से बड़ी दूर ढलती शाम में
सचमुच ही कोलाहल जहां हो गया था निराकार और निर्विकार
कहीं दूर दूर होती ध्वनियों पर बैठ जाया करती थी जहां एक चिड़िया
चिड़िया के पंखों पर लटक जाते थे शब्द
वे शब्द खो देते थे अपने अर्थों को
और हो जाते थे भारहीन.
मुझे याद है वो सुन्दर चिड़िया
चोंच जिसकी थी रक्ताभ
और पंख जैसे सुनहरी
आँखों में वह लिए उडती थी
स्वयं ईश्वर के एक अंश को.
अच्छा लगता था बड़ी दूर से
उसकी आँखों से मुझे देखा जाना
मैं बड़ी दूर होता था फिर भी
ईश्वर के अंश वाली उस चिड़िया की आँखों में
भय तो होता ही था
मेरे दुनियावी सरोकारों से डरती थी.
किन्तु समय के साथ साथ
भय उसका मुझसे बोलते बतियाते
कुछ हल्का हो गया था
और मैं
उसकी ईश्वरीय अंश वाली आँखों से प्रेम करने लगा था.
Read Comments